प्रयागराज। स्वर्ग रंगमंडल के कार्यालय में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं ग्रो फंड के सहयोग से शहर की प्रतिष्ठित 50 रंग संस्थाओं के संस्था प्रमुखों की उपस्थिति में “भारतीय रंगमंच के उत्थान में रंग संस्थाओं की भूमिका” विषय पर एक संगोष्ठी एवं पर चर्चा आयोजित की गई।
संगोष्ठी के आधार वक्तव को स्वर्ण रंगमंडल के निदेशक अतुल यदुवंशी ने प्रस्तुत करते हुए सभी का स्वागत किया।
परिचर्चा की अध्यक्षता अभिनव रंगमंडल के निदेशक शैलेश श्रीवास्तव ने की साथ ही मुख्य वक्ता के रूप में बैकस्टेज के प्रवीण शेखर ने अपने विचारों से सबको समृद्ध किया।
युवा रंगकर्मी और राष्ट्रीय नाटक विद्यालय स्नातक असगर अली ने सर्वप्रथम वक्तव्य रखते हुए रंग संस्था के रूपरेखा और उसकी आवश्यकता के साथ एक संस्था के निर्माण और सतत क्रियाशील रहने पर बल दिया साथ ही रंगमंच में आधुनिक संसाधनों यथा /थिएटर )लाइट प्रोशेनियम/ थिएटर की जानकारी और समझ को उन्नत करने को रेखांकित किया।
गोल्डन अवेक संस्था के निदेशक जुबेर मुस्ताक ने समस्त रंग संस्थाओं के आपसी सहयोग और सामंजस्य पर बल दिया साथ ही नई संस्थाओं के सृजन और पुराने संस्थाओं को मानक स्थापित करने की आवश्यकता की बिंदु प्रकाश डाला उन्होंने एक संस्था के कार्यक्रमों के दस्तावेजीकरण को मुख्य मानते हुए उसे और सुदृढ़ करने के लिए पूर्व में संस्था स्वर्ग द्वारा की गई क्षमतावृद्धि कार्यशालाओं को उपादेयता को स्वीकार किया।
वही तेजिंदर सिंह ने नई परिस्थितियों में संस्थाओं के आपसी सहयोग और विषय विशेषज्ञों के मार्गदर्शन की जरूरत को संगोष्ठी के माध्यम से सभी के साथ साझा किया साथ ही एक रंगमंच में तल्लीन रंगकर्मी के पारिवारिक जिम्मेदारियां के निर्वहन के प्रति भी सजगता और संवेदना के साथ सभी को जोड़ा।
नाजिम अंसारी ने अपने वक्तव्य में रंगमंचीय सहूलियतों की चुनौतियों से निपटने के लिए सुचारू कार्य योजना बनाने और उसके लिए सजा परोपकारी की बात कही।
द थर्ड बिल के निदेशक आलोक नायर ने कहा कि नाट्य विद्यालयों में जाने वाले प्रशिक्षणार्थी को नाटक विद्यालय पूर्व अनुभव के आधार पर और तैयार अभिनेता को ही मांजने का कार्य करते हैं और पूर्व में उन अभिनेताओं के लिए जाने वाली बुनियादी मेहनत लगन और परिश्रम जो रंग संस्थाएं और रंगकर्मी करते हैं उसे समझाना भी आवश्यक है साथ ही प्रस्तुतियों के लिए नई स्क्रिप्ट या विचारों के लिए उदाहरण के तौर पर ओटीपी पर आने वाले कंटेंट का उदाहरण दिया।
समय देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार बातों से ज्यादा काम करने की आवश्यकता को अजय मुखर्जी ने परिचर्चा में उल्लेखित किया उन्होंने कहा आज के थिएटर में लंबे लंबे मोनोलॉग की बजाए अच्छे और सच्चे रंगकर्म की जरूरत है जिससे कि भारतीय रंगमंच को सशक्त किया जा सके।
मधु शुक्ला जी ने भारतीय रंगमंच परंपरा और आधुनिकता के सामंजस और समावेश की विचार संगोष्ठी में रखी साथ ही कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को जोड़ने या किसी स्कूल को शामिल करने के विचार को सबके समक्ष रखा इसके साथ ही पुराने और प्रचलित रंग विधाओं के नित्य प्रदर्शन करते रहने की बात कही।
डॉ. श्लेष गौतम ने रंग संस्थाओं के इस आयोजन के संवाद को रंग – संसद की संज्ञा देते हुए कहा कि रंग परंपरा को ऐसे संवाद ऐसे चिंतन सदैव समृद्ध करते हैं और नए रास्ते नई रोशनी और दिशा देते हैं और यहां संवाद चर्चा और परिचर्चा जो मनन होता है उसे एक सकारात्मक और सृजनात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
प्रवीण शेखर ने संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के तौर पर ऐसे संवादों की उपादेयता और सार्थकता पर प्रकाश डाला और रंगकर्मियों की सोच और समझ को सुदृढ़ करने के लिए उनकी क्षमता वृद्धि पर जोड़ दिया।
सेमिनार के अध्यक्ष के रूप में शैलेश श्रीवास्तव ने लगभग चार दर्जन संस्थाओं के एकत्रित होने पर हर्ष व्यक्त किया और नए कथानक तथा नए समय को दर्ज करने वाले और अपने सरोकारों से जुड़ने वाले नाटकों को करने की महत्ता पर प्रकाश डाला और बताया कि दर्शक नाटक का अभिन्न अंग है और रंग संस्था को अपने दर्शक बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
उक्त गोष्ठी में डॉक्टर उमा दीक्षित, पंकज गौड़ , सचिन चंद्र, सिद्धार्थ पाल, कृष्ण कुमार मौर्य, राकेश वर्मा, विनय श्रीवास्तव, सनी कुमार, गुप्ता, तेजेंद्र सिंह, मिताली शर्मा ,ज्ञान यादव प्रिया मिश्रा देशराज पटेरिया, मेवा लाल बिंद, दीपचंद प्रजापति, संजू साहू, रमेश कश्यप, कमलेश चंद्र यादव, गुलाब चंद्र मौर्य, अजीत बहादुर, श्यामलाल राजबली, अजय मुखर्जी, अजय केसरी, अनीश, जमील वरुण कुमार, रितिक अवस्थी, उपस्थित रहे।
इस कार्यक्रम में संस्था स्वर्ग रंगमंडल के सहयोगी संस्था के रूप में समर्पित संस्था, इंडियन फोक एंड मॉडर्न आर्ट अकादमी तथा स्नेह आर्ट & कल्चर सोसायटी ने कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु सार्थक योगदान किया।
Anveshi India Bureau