मेरठ के जानी थाना में 31 मई 1978 में करमवीर की हत्या में पिता चमेल सिंह ने मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया था कि अपीलकर्ता इंद्रपाल, सोहनवीर दीवार फांदकर घर में घुस आए और करमवीर की गोली मारकर हत्या करने के बाद भाग निकले।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ के 46 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी ठहराए एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ व न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि बिना वैज्ञानिक साक्ष्य के एक चश्मदीद की गवाही पर किसी को दोषी ठहराना बेहद खतरनाक है। चाहे दस्तावेजी साक्ष्य हो या प्रत्यक्षदर्शी, उसकी भी पुष्टि की जरूरत होती है।
मेरठ के जानी थाना में 31 मई 1978 में करमवीर की हत्या में पिता चमेल सिंह ने मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया था कि अपीलकर्ता इंद्रपाल, सोहनवीर दीवार फांदकर घर में घुस आए और करमवीर की गोली मारकर हत्या करने के बाद भाग निकले। तहरीर के अनुसार सोहनवीर की चमेल सिंह की चचेरी बहन से अवैध संबंध थे। करमवीर ने अवैध संबंधों को रोकने का प्रयास किया था। इसीलिए अपीलकर्ताओं ने उसकी हत्या कर दी।
ट्रायल कोर्ट ने 26 नवंबर 1980 के आदेश से आरोपी अपीलकर्ता इंद्र पाल, सह-आरोपी सोहनवीर को दोषी ठहरा उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह सजा घटना के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर सुनाई गई थी। ट्रायल कोर्ट का मानना था कि गवाह मृतक का सगा भाई है और वह घटना के समय मौजूद था। ऐसे में उसकी गवाही पर अविश्वास करने का कोई औचित्य नहीं है। ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। अपील के लंबित रहने के दौरान सह-अभियुक्त सोहनवीर की मृत्यु हो गई। इस प्रकार उसकी अपील खारिज कर दी गई।
याची अधिवक्ता ने दलील दी कि एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी मृतक का भाई विजेंद्र सिंह की गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अपराध में प्रयोग किए गए हथियार को न बरामद किया गया और न ही अदालत में पेश किया गया। न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जहां मामला एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर आधारित है, वह पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं होना चाहिए।
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