देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू की इस सीट पर कांग्रेस के कमजोर होने के बाद समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है। इसकी मुख्य वजह संख्या बल के लिहाज से सबसे प्रभावशाली कुर्मी मतों का सपा के साथ होना था।
फूलपुर संसदीय सीट की चुनावी हवा के रूख को पढ़ पाना मुश्किल हो गया है। पूरा चुनाव इस पर निर्भर हो गया है कि भाजपा कुर्मी और दलित मतदाताओं का बिखराव रोक पाने में कितना सफल रही है। भाजपा और गठबंधन की हवा में बसपा बहुत पीछे छूटते दिखी। ऐसे में आमने-सामने की लड़ाई में समीकरण और उलझ गए हैं।
देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू की इस सीट पर कांग्रेस के कमजोर होने के बाद समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है। इसकी मुख्य वजह संख्या बल के लिहाज से सबसे प्रभावशाली कुर्मी मतों का सपा के साथ होना था। इसके अलावा मुस्लिम वोटर भी सपा के साथ रहे लेकिन देश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के साथ कुर्मी मतदाता भाजपा के साथ हो गए तो अन्य पिछड़ी जाति तथा दलित मतदाताओं का भी भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण दिखा।
विगत चुनावों में भाजपा के साथ रहे करीब साढ़े तीन लाख कुर्मी मतों का बिखराव साफ-साफ दिखा। जानकारों कहना है कि 30 प्रतिशत तक कुर्मी वोट सपा के साथ गया है। अमरनाथ मौर्य को टिकट देना तथा चुनाव के दौरान श्याम लाल पाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की सपा की रणनीति भी बहुत हद तक सफल होती दिखी। भाजपा के साथ मजबूती के साथ दिख रहे मौर्या, पाल समेत पिछड़ी जाति के अन्य मतदाताओं में भी सपा के पक्ष में झुकाव दिखा।
इसके अलावा इस चुनाव में बसपा बहुत मजबूत नहीं दिखी। 2019 के चुनाव में भी बसपा यहां बहुत मजबूत नहीं थी औरदलितों का वोट भाजपा के साथ गया था लेकिन करीब तीन लाख दलित मतदाताओं ने इस बार बूथ पर भी खामोशी दिखाई। बताया जा रहा है कि इस बार दलित मतों के बीच बसपा तथा भाजपा के अलावा सपा ने भी सेंधमारी की है।