Saturday, July 27, 2024
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Prayagraj: कहीं जातीय समीकरण तो कहीं रोजगार व विकास के मुद्दे पर पड़े वोट, मतदाताओं ने अंत तक साधे रखी चुप्पी

इलाहाबाद शहर उत्तरी: भाजपा के गढ़ शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र में साइकिल भी खूब दौड़ी। यहां भाजपा और सपा के बीच सीधी लड़ाई दिखी। जीत-हार का आकलन करना दोनों ही दलों के लिए मुश्किल हो गया है। मतदाताओं की बेरुखी के बीच बसपा भी खामोश दिखी। बख्तियारी समेत एक-दो जगहों पर ही बसपा का बस्ता लगा दिखा।

फूलपुर के अंतर्गत शहर उत्तरी से भाजपा की जीत की राह निकलने की बात कही जा रही है, लेकिन इस बार समीकरण बदले हैं। भाजपा के पक्ष में मतों का ध्रुवीकरण नहीं दिखा। ऐसे में कम मतदान से दोनों दलों की चुनौती और बढ़ गई है। सेंट एंथोनी बूथ पर मतदान देकर निकले लखन जायसवाल का कहना था कि जो दिख रहा है उसे ही वोट दिया। पास में खड़े सुयोग कहते हैं कि पहले अनाज के साथ चीनी और मिट्टी का तेलौ मिलत रहा। अउसहूं बदलाव त होत रहे के चाही।

बिशप जॉनसन कॉलेज केंद्र पर सुबह साढ़े नौ बजे सन्नाटा रहा। वोट देकर निकलीं रोली चौधरी का कहना था कि नौकरी करना कठिन हो गया है। खुद अध्यापक रोली का कहना था कि परिवार में तीन अन्य लोग सरकारी नौकरी में हैं, लेकिन वोट देने नहीं आए। उनका कहना था कि नौकरी का दबाव बढ़ गया है। ऐसे मं घर में छुट्टी का माहौल बन गया है।

कम मतदान प्रतिशत बदल सकता है परिणाम

मेरी लूकस गर्ल्स इंटर कॉलेज में भी सन्नाटा दिखा। 11:30 बजे तक दो बूथों पर 200 वोट पड़े थे। जबकि, एक बूथ पर कुल मतों की संख्या 1069 व दूसरे पर 1225 वोट हैं। वहीं, बगल के बख्तियारी स्कूल पर मतदाताओं की अपेक्षाकृत लंबी लाइन देखने को मिली। इस केंद्र के बूथ संख्या 250 पर कुल 1016 में से 200 वोट पड़े थे। वहीं, 251 बूथ पर 1157 में से 220 वोट पड़े थे। बख्तियारी प्राथमिक विद्यालय पर वोट देने पहुंचे रहमत व शकीना में मतदान को लेकर कोई दुविधा नहीं दिखी। लल्लन कुशवाहा एवं राजीव पटेल ने देश के नाम पर वोट देने की बात कही।

2019, 2022 में एकतरफा जीत, लेकिन इस बार बदले समीकरण

2019 लोकसभा चुनाव में शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने बड़े अंतर से विपक्षियों को पीछे छोड़ दिया था। भाजपा की केशरी देवी पटेल को शहर उत्तरी में 106303, सपा को 45391 और कांग्रेस को 11826 वोट मिले थे। बसपा ने सपा का समर्थन किया था। यही स्थिति 2022 के विधानसभा चुनाव में भी रही। भाजपा के हर्षवर्धन बाजपेई ने एकतरफा जीत हासिल की थी।

इस चुनाव में भाजपा को 95705 वोट मिले थे। वहीं, सपा को 41009, कांग्रेस को 23335 और बसपा को 9486 वोट मिले थे। दोनों चुनाव में भाजपा को अन्य दलों को मिलाकर कुल मत से भी अधिक वोट मिले थे। लेकिन, इस बार के समीकरण भाजपा के लिए बहुत नहीं दिखे। आमने-सामने की लड़ाई में सपा के अमरनाथ मौर्य भाजपा के प्रवीण पटेल को टक्कर देते दिखे।

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मेजा विधानसभा: बिखरा दलित वोट, भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर

Somewhere the votes were cast on caste equation and somewhere on the issue of employment,

मेजा विधानसभा क्षेत्र में दलित वोटों में बिखराव की वजह से भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर दिखी। वहीं, उच्च जाति और अनुसूचित जाति के वोटरों में भी बिखराव देखने को मिला, जबकि यादव और मुस्लिम समाज के मतों ने कांग्रेस को मजबूती दी। दूसरी ओर, ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य वोटर भाजपा के साथ खड़े रहे। अनुसूचित जनजाति के वोट भी भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटे नजर आए। यहां जातिगत समीकरणों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखा।

डेलौहां पोलिंग बूथ के मतदाता विक्रमाजीत सिंह ने कहा कि पांच साल तक सांसद का चेहरा नहीं देखा है। हम ऐसे प्रत्याशी को चुन रहे हैं, जो हमारा नेता होगा और हमारे काम आएगा। वहीं, कामेश्वर पटेल ने कटाक्ष करते हुए कहा कि पांच किलो का राशन घर-घर पहुंच रहा है। लोग सरकार से खुश हैं। स्थानीय मतदाताओं ने बताया कि इस बार प्रधान या स्थानीय नेताओं के कहने पर नहीं लोग खुद के अनुभव के आधार पर निर्णय लेकर मतदान कर रहे हैं।

असमंजस की स्थित बनी रही

मेजा के अधिकतर पोलिंग स्टेशन पर एक पक्षीय वोटिंग दिखाई दी। जहां, जिस समुदाय के वोट अधिक थे, वहां उसी समीकरण के आधार पर वोट डाले गए। हालांकि, जो पोलिंग बूथ परंपरागत भाजपा-सपा की थी, वहां पर ज्यादा बदलाव नहीं दिखाई दिया। ओबीसी और अनुसूचित जाति के वोटरों का वोट दोनों ही पार्टी के खाते में गिरा। ऊंचडीह के अजय बिंद ने बताया कि ओबीसी और दलित दोनों समाज के वोट बिखर गए हैं।

यह वोट आमतौर पर बसपा का था। यही वोट जिसके खाते में गिरेगा, जीत उसी को होगी। कुछ समाज के वोटरों की बातें छोड़ दें तो दावे के साथ कोई भी मतदाता यह बताने की स्थिति में नहीं दिखाई दिया कि किस समाज का शत-प्रतिशत वोट किस पार्टी के खाते में पड़ रहा है।

मेजा विधानसभा सीट के अधिकतर पोलिंग बूथ पर मतदाता सूची में गड़बड़ी के मामले भी सामने आए हैं। क्षेत्र के औता पोलिंग बूथ पर दोपहर के एक बजे सन्नाटा पसरा रहा। यहां के लोगों ने बताया कि अबतक 100 से अधिक लोग वापस जा चुके थे। क्योंकि, उनके नाम मतदाता सूची से गायब थे। भरारी पोलिंग बूथ पर भाजपा और कांग्रेस के बीच भीषण संघर्ष रहा। यहां दलित और आदिवासी वोटर भी बंटे नजर आए। भूमिहार, यादव और मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा वोटिंग की, जबकि ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य वर्ग का वोट भी एक पक्ष में गया।

शहर पश्चिमी: मुस्लिम में नहीं दिखी दुविधा, जातीय वोटरों में बंटा नजर आया हिंदू
Somewhere the votes were cast on caste equation and somewhere on the issue of employment,

शहर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र में गठबंधन व भाजपा प्रत्याशी में कांटे की लड़ाई दिखी। महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे पर यहां जमकर वोट बरसे। दूसरी ओर विकास को लेकर भी ईवीएम का बटन दबाने वालों की संख्या कम नहीं रही। मुस्लिम मतदाताओं में वोटिंग को लेकर किसी तरह की दुविधा नहीं दिखी। वहीं, हिंदू वोट जातीय समीकरणों में बंटता नजर आया।

भगवतपुर स्थित संविलियन विद्यालय पीपलगांव मतदान केंद्र पर वोट डालने पहुंचीं महजबीं बानो ने कहा कि उन्होंने महंगाई के मुद्दे पर वोट दिया है। उनके पति राशिद ने भी कहा कि जनता महंगाई से त्रस्त हो चुकी है। इसी केंद्र पर बीएससी कर रहे तारिक खान ने कहा कि बेरोजगारी के मुद्दे पर वोट दिया है। जनरल स्टोर संचालक बद्रीनाथ ने कहा कि क्षेत्र का विकास हो रहा है। इसी पर वोट दिया है।
धूमनगंज स्थित मदर्स पब्लिक स्कूल में विशाल सिंह ने कहा कि विकास मुद्दे पर वोट डाला है। इसी केंद्र पर आए विपिन सेठ ने कहा कि जुमला नहीं, युवाओं के लिए सोचने वाली सरकार बनाने को उन्होंने वोटिंग की। वहीं, शफीक व उनकी पत्नी निबा ने कहा कि महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है।

शिक्षा और रोजगार का मुद्दा छाया रहा

महिला ग्राम इंटर कॉलेज मतदान केंद्र पर दीक्षा पहली बार वोट डालने पहुंची थीं। उन्होंने बताया कि अच्छी शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर वोट दिया है। व्यापारी अमरबहादुर मौर्य ने कहा कि उन्होंने बदलाव के लिए वोट किया। सेंट विष्णा प्राथमिक स्कूल बेगम सराय, प्राथमिक विद्यालय अहमदपुर पावन, शेरवानी इंटर कॉलेज सल्लाहपुर, प्राथमिक विद्यालय नीवा और पंचम लाल इंटर कॉलेज मतदान केंद्र पर पहुंचे बहुत से मुस्लिम वर्ग के मतदाताओं ने साफ कहा कि उन्होंने महंगाई-बेरोजगरी व जाति-धर्म के नाम पर विभेद न करने वाली सरकार बनाने के लिए वोट दिया। ज्यादातर मतदान केंद्रों पर मुस्लिम वर्ग के मतदाताओं का वोट करने का मुद्दा यही रहा।

वहीं, हिंदू वोटर जातीय समीकरणों में उलझा नजर आया। दलित वर्ग के बहुत से वोटरों ने कहा कि विकास के मुद्दे पर उन्होंने वोटिंग की। हालांकि, कुछ ऐसे भी रहे जिन्होंने बदलाव को आवश्यक बताया। पिछड़े वर्ग का मतदाता भी मुद्दों को लेकर बंटा नजर आया। जैसे दिग्गज सिंह कॉलेज मतदान केंद्र पर पहुंचे रवि गुप्ता ने राष्ट्र की अखंडता के मुद्दे पर वोट डालने की बात कही। दिनेश मौर्य ने कहा कि ठोस फैसले वाली सरकार बनाने के लिए उन्होंने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

सबसे ज्यादा मुस्लिम वर्ग के मतदाता

शहर पश्चिमी क्षेत्र में 4.50 लाख मतदाता हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या मुस्लिम वर्ग के मतदाताओं की है। यहां 1.25 लाख मुस्लिम वाेटर हैं। इसके बाद कायस्थ एक लाख, दलित व पिछड़ा 65-65 हजार, ब्राह्मण 20 हजार, मौर्य 35 हजार के आसपास व अन्य वोटर हैं।

करछना विधानसभा: रोजगार, सुरक्षा, जातिगत समीकरण पर पड़ी वोट की चोट

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करछना विधानसभा क्षेत्र में हर बूथ पर कमल और पंजे के बीच कड़ी टक्कर दिखी। यहां 53.88 प्रतिशत मतदान हुआ। वोटरों ने मुद्दे गिनाने के बजाय जातिगत समीकरण पर ज्यादा जोर दिया। करमा बाजार के पोलिंग स्टेशन पर रामकिशोर पटेल ने कहा कि लड़ाई भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की है। दलित मतदाताओं का वोट भी दोनों पार्टियों में बराबर से बंट रहा है।

जयशंकर कुशवाहा ने कहा कि ओबीसी वोटरों की भूमिका अहम है। बेरोजगारी और महंगाई बड़े मुद्दे हैं। हालांकि, पीएम की लोकप्रियता भी मतदाताओं को अपनी ओर लुभा रही है। मौजा गांव के विकास ओझा ने बताया कि कोई भी प्रत्याशी गांव में वोट मांगने नहीं आया है। ऐसे में हर कोई अपने विचार से वोट डाल रहा है। हम युवा रोजगार के मुद्दे पर वोट डाल रहे हैं।

पवरिया और घिसन का पुरा पोलिंग बूथ के मतदाताओं ने कहा कि लोग मोदी व अखिलेश के नाम पर वोट डाल रहे हैं। साथ ही जातिगत समीकरण भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। यहां कुर्मी और दलित वोटों में बिखराव है। दलित मतदाता भी भाजपा-कांग्रेस के बजाय बसपा के साथ ही जा रहे हैं। इन पर सेंधमारी भाजपा-कांग्रेस दोनों ने की है, लेकिन कितना सफल हुए यह नतीजे में मालूम चलेगा। बरदहा के मौर्या समाज के वोटरों में भी बिखराव नजर आया। शिवम मौर्या ने कहा कि उज्ज्वल रमण सिंह को पिता के नाम का बहुत फायदा मिल रहा है। भाजपा और मजबूत चेहरा देती तो चुनाव एकतरफा हो जाता।

बाबूपुर, सारंगापुर, दांदूपुर, पालपुर आदि इलाकों में भी कमल और पंजे के बीच संघर्ष चला। ओबीसी और दलित वोटरों के साथ यहां पर स्वर्ण समाज के बंपर वोट बरसे। कई पोलिंग पर 55 प्रतिशत के करीब मतदान हुआ। पालपुर की अंकिता सिंह ने कहा कि सुरक्षा के नाम पर वोट दिया है। वहीं, उन्हीं की साथी शिवानी ने कहा कि महंगाई के मुद्दे पर मतदान किया है। लिगदहिया और हथिगन के युवा वोटर आकाश, नीरज, अंकित ने बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा, रोजगार, विकास और शिक्षा के मुद्दे पर वोट किया है।

Somewhere the votes were cast on caste equation and somewhere on the issue of employment,

इलाहाबाद संसदीय सीट के आदिवासी बहुल विधानसभा क्षेत्र में कोल मतदाता इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच बंटे नजर आए। कुछ दिनों पहले तक जिन आदिवासी और एससी मतदाताओं के भरोसे भाजपा काफी मजबूत नजर आ रही थी, उनके बिखराव ने कांग्रेस को बराबर की लड़ाई पर लाकर खड़ा कर दिया है।

सिर्फ आदिवासी और एससी ही नहीं, ओबीसी वोटर भी इस विधानसभा क्षेत्र में बंटे नजर आए। कोरांव में भाजपा को मजबूत माना जा रहा था लेकिन अचानक बदले जातिगत समीकरण ने लड़ाई को ऐसा उलझा दिया है कि वहां भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबले देखने को मिला। कोरांव विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत बसहरा मतदान केंद्र में वोट देने पहुंचे कुछ एससी मतदाताओं ने वोटरों के बीच हुए बिखराव का कारण स्पष्ट किया।

उन्होंने बताया कि राजबलि जैसल के भाजपा में जाने के कारण एससी वोटरों एक वर्ग पूरी तरह से भाजपा में चला गया है। वहीं, ठाकुर ग्राम प्रधानों के प्रभाव में एससी वोटरों के एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस का रुख किया है। ब्राह्मण मतदाता में ज्यादातर भाजपा के साथ गए हैं जबकि कोल मतदाताओं ने इस बार कांग्रेस को प्राथमिकता दी है लेकिन वे भी बंटे हुए हैं।

योजना का लाभ देने में भेदभाव का आरोप

कोरांव के प्राथमिक विद्यालय तरांव में वोट देने पहुंचे कोल मतदाता सुरेश कुमार और कुंज लाल ने दावा किया कि ज्यादातर कोल मतदाता कांग्रेस की तरफ गए हैं। प्राथमिक विद्यालय समलीपुर कोरांव में मतदान के लिए पहुंचे संजय यादव और गुलाब पटेल ने बेरोजगारी एवं पेपर आउट जैसे मुद्दों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बदलाव पर जोर दिया।

कोरांव के मतदाताओं से जब पीएम आवास योजना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि योजना तो ठीक है लेकिन इसका फायदा सिर्फ उन्हीं लोगों को मिल रहा है जो ग्राम प्रधानों के करीब हैं। इस योजना का लाभ पाने के लिए 10 से 12 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। वहीं, पांच किलो मुफ्त राशन पर बोले की इससे महीने भर के लिए पेट नहीं भर सकता।

पिछले चुनाव में सरकार की इन्हीं योजनाओं का हवाला देकर नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने जाने की वकालत करने वाले मतदाता इस बार दबी जुबान में बदलाव की बात भी करते नजर आए। कोरांव में मतदाताओं के रुख ने संकेत दिया कि इस बार के चुनाव में वहां मुद्दों से ज्यादा जातिगत समीकरण हावी हैं।

 

Courtsyamarujala.com

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