एनसीजेडसीसी की ओर से प्रकाशित लोक कला व संस्कृति की तिमाही पत्रिका कला संगम का नया अंक चित्रकला की विविधता पर केंद्रित है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से प्रकाशित पत्रिका का यह तीसरा अंक है। पत्रिका में चित्रकला के उद्गम, आदिम मानवों द्वारा गुफाओं की दीवारों पर उकेरी गईं आकृतियां, भित्तचित्र, मिथिला, कुमाऊं, राजस्थानी, जनजातीय और गोदना कला का सचित्र चित्रण किया गया है। केंद्र के निदेशक प्रो. सुरेश शर्मा के अनुसार पत्रिका के माध्यम से मिथिला चित्रकला का आधार कोहबर घर की दीवाल पर बनाई गयी आकृतियां, गोण्ड जनजातियों की ओर से बनाए गए पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं को दर्शाया गया है। पत्रिका में कुमाऊं की ऐपण कला के बारे में बृजमोहन जोशी, राजस्थान के मांडणा अंकन पर डॉ. आशीष कुमार श्रृंगी, जय प्रकाश चौहान का मालवा की प्रचलित लोक कलाओं के साथ वहां की मांडना कला पर विस्तार से लिखा है।
वंदना जोशी ने राजस्थान की गोदना कला को रेखांकित है। इस क्रम में इविवि के डॉ. धनंजय चोपड़ा का मिथिला चित्रकला की सिद्धहस्त कलाकार यशोदा देवी पर लिखा विवेचनात्मक लेख कला साधकों की मेहनत का दर्शाता है। कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने चित्रकला और आज के समय में उसके स्वरूप पर सारगर्भित लेख लिखा है। पत्रिका की सज्जा हेमंत भटनागर और विरेन्द्र चौहान का है। पत्रिका के संपादक अमिताभ श्रीवास्तव के अनुसार यह अंक लोक कला प्रेमियों को अधिक पसंद आयेगा।
Anveshi India Bureau