Friday, October 4, 2024
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हाईकोर्ट : मासूम से दुष्कर्म और हत्या में मिली फांसी की सजा रद्द, साक्ष्यों के अभाव में आरोपी को किया बरी

यह फैसला न्यायमूर्ति अरविंद कुमार संगवान और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत ने ट्रायल कोर्ट की ओर से फांसी की सजा की पुष्टि के लिए भेजे गए संदर्भ और अभियुक्त द्वारा दाखिल जेल अपील की एक साथ सुनवाई करते हुए सुनाया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस की दोषपूर्ण विवेचना के चलते दो साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के मामले में तांगा चालक को मिली फांसी की सजा रद्द कर दी। कोर्ट ने कहा कि विवेचना की खामियों के कारण अभियोजन परिस्थितिजन्य साक्ष्य के तौर पर पीड़िता के अंतिम दृश्य, डीएनए रिपोर्ट और इकबालिया बयान का आपस में रिश्ता जोड़ने में नाकाम साबित हुआ।

अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का अधिकारी है। यह फैसला न्यायमूर्ति अरविंद कुमार संगवान और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत ने ट्रायल कोर्ट की ओर से फांसी की सजा की पुष्टि के लिए भेजे गए संदर्भ और अभियुक्त द्वारा दाखिल जेल अपील की एक साथ सुनवाई करते हुए सुनाया।

क्या है मामला 

मामला बुलंदशहर जिले के शिकारपुर थाना क्षेत्र का है। 10 जुलाई 2020 को वादी ने अपनी दो वर्षीय भतीजी के घर के पास खेलते समय गायब होने का मुकदमा शिकारपुर थाने में दर्ज कराया था। गुमशुदगी दर्ज होने के बाद पुलिस और परिजनों ने बच्ची की तलाश शुरू की। खोजी कुत्ते की मदद भी ली गई। इसी दौरान दो दिन बाद गांव के ही प्रेम सिंह प्रजापति के घर के पीछे वाले तालाब में बच्ची का शव तैरता हुआ पाया गया।पोस्टमार्टम में दुष्कर्म की पुष्टि हुई। बच्ची को अंतिम बार प्रेम सिंह के ही साथ तालाब की ओर जाते हुए देखा गया था। पुलिस ने प्रेम सिंह को गिरफ्तार कर लिया।

ट्रायल कोर्ट से मिली फांसी

पुलिस के आरोप पत्र पर करीब डेढ़ साल बुलंदशहर की पॉक्सो की विशेष अदालत में ट्रायल चला। इस दौरान पेश गवाहों के बयान में पता लगा कि प्रेम सिंह ने दुष्कर्म के बाद बेहोशी की हालत में बच्ची को तालाब में फेंक दिया था। पुलिस ने आरोपित की निशानदेही पर तालाब से बच्ची का शव बरामद किया था। बच्ची के कपड़े और आरोपित के कपड़ों को फॉरेंसिंक लैब में जांच के लिए भेजा गया जिसमे प्रेम सिंह के कपड़ों पर बच्ची के ब्लड ग्रुप की पुष्टि हुई थी। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने प्रेम सिंह को दोषी मानते हुए फांसी और 1.40 लाख रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई थी।

हाईकोर्ट ने पाई विवेचना में खामी

 हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि मामले की विवेचना दो विवेचना अधिकारियों ने की, लेकिन इस दौरान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान दर्ज करने में बेहद लापरवाही की। अभियोजन के गवाह ओम प्रकाश, नरेश कुमार, राकेश गिरि ने अपने फोन से शव मिलने की सूचना पुलिस को दिए जाने से इन्कार कर दिया। जबकि विवेचक ने केस डायरी में उनके हवाले से सूचना दिए जाने की बात उनके बयान के तौर पर लिखी थी। अदालत के सामने तीनों गवाहों ने अभियोजन की कहानी का खंडन किया।
कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य की शृंखला में पीड़िता अंतिम दृश्य, इकबालिया बयान और डीएनए रिपोर्ट महत्वपूर्ण कड़ी है, लेकिन अभियोजन इनका रिश्ता अभियुक्त के साथ जोड़ने में नाकाम रहा। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की ओर से सजा की पुष्टि के भेजे गए संदर्भ को अस्वीकार कर दिया। जबकि, अभियुक्त की जेल अपील स्वीकार करते हुए उसे बेगुनाह करार दिया।

 

Courtsyamarujala.com

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