Friday, September 13, 2024
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मेरा मोटिवेशनल अनुभव ( 4 )

आजकल अधिकतर माता पिता अपने बच्चों की एक समस्या से परेशान दिखते हैं कि उनके बच्चे पढ़ने के स्थान पर टीवी अथवा मोबाइल देखने में लगे रहते हैं। बच्चों की इस आदत से उनकी पढ़ाई पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ रहा बल्कि उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बर्बाद हो रहा है।

आज इसका एक ठोस एवं रचनात्मक उपाय मेरे सामने आया।

आज ( रविवार , दिनांक 18 अगस्त 2024 ) हिन्दुस्तान अखबार में प्रेरणादायक एक लेख पढ़ा। लेख का हैडिंग है ” सही संगत , संस्कार से चला सिलसिला “। इस लेख में बच्चों की इस समस्या का उपाय साफ साफ पढ़ने को मिलता है। मेरा मानना है कि इस लेख को न केवल हर माता पिता को बल्कि हर स्कूल के मुखिया को पढ़ना चाहिए। यह लेख शतरंज के इंटरनेशनल ग्रैंडमास्टर वैशाली रमेश बाबू एवं प्रज्ञानंद के बारे में है। ये दोनों सगे भाई बहिन हैं। वैशाली अपने भाई प्रज्ञानंद से 4 साल बड़ी हैं।

वैशाली जब 6 साल की थी और कक्षा एक में पढ़ती थी तब उनके स्कूल ने दुनिया के श्रेष्ठतम शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद को आमंत्रित किया। आनंद ने अपने अनुभवों को सरल से सरल बोली में बच्चों के सामने रखा। सभी बच्चों ने आनंद के अनुभवों को बहुत ध्यान से सुना। इन बच्चों में वैशाली भी शामिल थीं। यह बच्ची विश्वनाथन आनंद की उत्साह भरी बातों में खो गई। उसी समय उसे लगा कि काश! मैं भी ऐसे ही शतरंज खेलकर दुनिया भर में मिसाल बन जाती। बच्ची के दिल दिमाग पर आनंद की बातों का ऐसा जादुई असर पड़ा कि उसने सब कुछ घर पर आकर अपने मम्मी पापा को बता दिया। वैशाली की बातों को सुनकर उसके माता पिता भी खुश हुए और उन्हें लगा कि चलो इससे इसका टीवी देखना भी बंद हो जाएगा। माता पिता ने भी बच्ची को शतरंज खेलने में पूरा सपोर्ट किया। लेकिन उस समय उन्हें नहीं पता था कि इससे न केवल उनकी यह बच्ची आगे जाकर शतरंज की इंटरनेशनल ग्रैंडमास्टर बन जाएगी बल्कि इसका चार साल छोटा भाई प्रज्ञानंद भी।

यह उस दौर की घटना है जब मोबाइल नहीं थे और बच्चे मौका पाकर टीवी से चिपक जाते थे।

आज दुनिया चर्चा करती है कि बहन भाई हों , तो ऐसे हों , सफल और संस्कारी।

मैं लेख में छपी प्रेरणादायक बातों को यहां उतने अच्छे ढंग से लिखने में अपने को असमर्थ पा रहा हूं। मैं फिर चाहूंगा कि हर व्यक्ति को इस अत्यंत प्रेरणादायक लेख को अवश्य पढ़ना चाहिए। इससे बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।

खेल की एक सेलिब्रिटी को बुलाकर जिस काम को वैशाली के स्कूल ने किया था उस प्रकार का काम प्रायः प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान भी करते रहते हैं । ये संस्थान समय समय पर विभिन्न क्षेत्रों की सेलिब्रिटीज को आमंत्रित करते रहते हैं। यही कारण है कि समय समय पर ऐसे उदाहरण सामने आते रहते हैं कि इन शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी किसी किसी सेलिब्रिटी से इतनी अधिक प्रेरणा पा जाते हैं कि वे पढ़ने कुछ जाते हैं और बन कुछ जाते हैं। गए थे इंजीनियर अथवा डॉक्टर इत्यादि बनने और बन गए बड़े खिलाड़ी , एक्टर , गायक , लेखक इत्यादि। कोई नहीं जानता कि कौन व्यक्ति किसके लिए ट्रिगर का काम कर जाए यानि प्रेरणादायक बन जाए….

 

अनंत अन्वेषी।

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