प्रयागराज की बात करें तो शहर में स्थित झूंसी आखाड़े में आज से दो साल पहले लगभग 12-15 की संख्या में महिला पहलवान कुश्ती के मैदान में दांव पेंच लड़ाने आती थीं। लेकिन अब मुश्किल से 2-3 लड़कियां इस अखाड़े में कुश्ती का अभ्यास करने पहुंचती हैं, वह भी कभी-कभी।
खेल जगत मेंं महिला खिलाड़ियों की उपलब्धि की बात करेंं तो सबसे ज्यादा पदक महिलाओं ने कुश्ती मेंं ही जीते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी हमारे देश के कई राज्यों में लड़कियां कुश्ती जैसे खेल से दूरी बनाती हुई नजर आ रहीं हैं। प्रयागराज की बात करें तो शहर में स्थित झूंसी आखाड़े में आज से दो साल पहले लगभग 12-15 की संख्या में महिला पहलवान कुश्ती के मैदान में दांव पेंच लड़ाने आती थीं। लेकिन अब मुश्किल से 2-3 लड़कियां इस अखाड़े में कुश्ती का अभ्यास करने पहुंचती हैं, वह भी कभी-कभी। वहीं अखाड़े में 20-22 की संख्या में लड़के कुश्ती का अभ्यास करने के लिए हर रोज पहुंचते हैं।
महिला पहलवानों को कुश्ती सीखाने वाले मुकेश यादव बताते हैं कि यह प्रयागराज का एकमात्र ऐसा अखाड़ा है जहां महिलाएं कुश्ती खेलने आती हैं, लेकिन बीते सालों में महिला पहलवानों की इस खेेल से दूरी की कई वजहें हैं, कुछ लाेगों ने भविष्य की चिंता के चलते खेल से दूरी बनाई, तो कुछ शिक्षिका बन गई, तो किसी ने शादी के बाद इस खेल से अपना नाता ही तोड़ दिया।
मुकेश यादव आगे बताते हुए कहते है कि, बारिश में महिला पहलवानों के लिए इस खेल का अभ्यास करना बेहद ही मुश्किल हो जाता है और मिट्टी में कुश्ती का अभ्यास करके मैट पर प्रतियोगिता जीतना भी खिलाड़ियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है। यहीं कारण है कि बीते कई सालों में इस अखाड़े पर अभ्यास करने आ रही कई महिला खिलाड़ियों को एक भी पदक हासिल न हो सका।
Courtsy amarujala.com