उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज एवं भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में जगतगुरु श्री शंकराचार्य व्याख्यानमाला के अंतर्गत शनिवार को तिलक सभागार में समाज विज्ञान विद्या शाखा के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा “भारत की एकता एवं एकात्मकता में जगतगुरु श्री शंकराचार्य का योगदान” विषय पर एक दिवसीय व्याख्यान का आयोजन किया गया।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर जटाशंकर, पूर्व विभागाध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग,इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय ने अपने व्याख्यान में कहा कि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की एकता को अक्षुण्ण एवं सांस्कृतिक एकसूत्रता को बनाए रखा। उन्होंने कहा कि आदि शंकर की दिग्विजय यात्रा का उद्देश्य किसी समुदाय के विरुद्ध विद्वेष नहीं था बल्कि भारतीय संप्रदायों एवं धर्म में आयी विकृतियों का समूल विनाश करना था। शंकराचार्य ने शक्तिहीन खंडित होते राष्ट्र को युवा अनुकूल वैज्ञानिक अध्यात्म दर्शन के आधार पर पुनर्जीवित किया। उन्होंने अद्वैत वेदांत का प्रवर्तन किया। उनके दर्शन का मूल आधार एकात्मकता है। प्रोफेसर जटाशंकर ने कहा कि आत्म तत्व को सिर्फ मनुष्य तक ही सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए। सृष्टि में जो भी है उसमें आत्म तत्व है। सृष्टि और सृष्टा में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में आजादी के महानायकों महात्मा गांधी, नरेंद्र देव एवं स्वामी विवेकानंद आदि के विचारों पर अद्वैतवाद का प्रभाव भारत की एकता और एकात्मकता को प्रमाणित करता है। सनातन धर्म की एकता को स्थापित करने के लिए चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की गई।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अभय, क्षेत्र धर्म जागरण प्रमुख, पूर्वी उत्तर प्रदेश ने अपने संबोधन में कहा कि शंकराचार्य को समझने के लिए सर्वप्रथम भारतीय ज्ञान परंपरा एवं वेदों को समझना होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया में जो भेदभाव और अलगाव दिखाई पड़ता है, वह अज्ञानता का कारण है। सत्य का साक्षात्कार हो जाने या सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेने पर भेद बुद्धि स्वत: समाप्त हो जाती है। सम्पूर्ण संसार उसी परम ब्रह्म का अभिव्यक्त स्वरूप है। सही मायने में उनका अद्वैत दर्शन देश, कॉल, परिस्थिति आदि सब प्रकार की मानव निर्मित सीमाओं से परे एक विश्व दर्शन है जिसमें संपूर्ण धरती एवं मानवता का कल्याण निहित है ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर एस कुमार, निदेशक, समाज विज्ञान विद्या शाखा ने कहा कि मनुष्य को सदैव सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होना चाहिए। ईश्वर पर विश्वास एवम् निष्ठा होनी चाहिए तथा शंकराचार्य द्वारा स्थापित मानदंडों का अनुकरण करना चाहिए।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन तथा अनुराग शुक्ला द्वारा सरस्वती वंदना के साथ किया गया। वाचिक स्वागत प्रोफेसर संजय सिंह ने तथा विषय प्रवर्तन कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आनंदानन्द त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.सुनील कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन मानविकी विद्या शाखा के निदेशक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोध छात्र एवम छात्र -छात्राएं उपस्थित रहे।
कार्यक्रम से पूर्व अतिथियों एवं वक्ताओं का स्वागत विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह द्वारा किया गया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह कार्यक्रम युवाओं एवं जनमानस तक जगतगुरु शंकराचार्य के विचारों को प्रसारित करने में सफल होगा। साथ ही उन्होंने कार्यक्रम के समन्वयक डॉ आनंदानंद त्रिपाठी को कार्यक्रम की सफलता हेतु शुभकामनाएं दी।
Anveshi India Bureau