कौशाम्बी से प्रयागराज, फतेहपुर-कानपुर तक कर्नल नील ने ऐसा नरसंहार किया था कि कई गांव नष्ट हो गए थे। अंग्रेज इतिहासकार सर जॉन कावे ने अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया है। कावे ने लिखा है कि नील के हमले के बाद इलाहाबाद की सड़कों, चौराहों और गलियों में जो लाशें टंगी थीं, उनको उतारने में सूर्योदय से सूर्यास्त हो जाती थीं।
गंगा किनारे राजा टोडरमल का क्षतिग्रस्त मोती महल 1857 में अंग्रेज अफसर कर्नल नील के क्रूर हमले का प्रतीक है। तब नील ने तोप-गोलों की बौछार से मोती महल के सात फाटकों को तोड़कर खजाने को लूट लिया था। प्रयागराज में नील की बर्बरता इतिहास के पन्नों में भी दर्ज है। तब उसने भारत माता की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले छह हजार से अधिक क्रांतिकारी उसके हमले में शहीद हो गए थे।
कौशाम्बी से प्रयागराज, फतेहपुर-कानपुर तक कर्नल नील ने ऐसा नरसंहार किया था कि कई गांव नष्ट हो गए थे। अंग्रेज इतिहासकार सर जॉन कावे ने अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया है। कावे ने लिखा है कि नील के हमले के बाद इलाहाबाद की सड़कों, चौराहों और गलियों में जो लाशें टंगी थीं, उनको उतारने में सूर्योदय से सूर्यास्त हो जाती थीं। इसके लिए आठ-आठ गाडि़यां तीन महीने तक लगी रहीं। कावे ने अपनी पुस्तक में छह हजार लोगों के मारे जाने का उल्लेख किया है।
नील के काले कारनामों का उल्लेख जार्ज कैंपवेल के एक लेख में भी मिलता है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि जनरल नील ने इलाहाबाद में कत्लेआम से बढ़कर निर्मम हत्याएं कीं। प्रयागराज के इतिहास का लेखन करने वाले अनुपम परिहार ने उत्तर प्रदेश का स्वतंत्रता संग्राम में भी नील के हमले का विस्तार सेे उल्लेख किया है। जून 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दोआबा क्षेत्र में विद्रोह चरम पर जब फैला तब उसे दबाने के लिए जनरल नील को भेजा गया था।
इलाहाबाद से फतेहपुर-कानपुर तक युवाओं ने कई सड़कों को अवरुद्ध कर दिया था। इसी सड़क से अंग्रेजी सेना इलाहाबाद की ओर प्रवेश कर रही थी। नील ने तब इस क्षेत्र के क्रांतिकारियों के दमन के लिए 30 जून 1857 को मेजर रिनोद के नेतृत्व में सेना भेजी थी। रिनोद ने उस दौरान कई गांवों को नष्ट कर दिया। सुलेमसराय के पास इमली के पेड़ के पास वाहनों पर लादकर क्रांतिकारी लाए जाते थे और उनको उसी पेड़ पर लटका दिया जाता था। इतने के बाद भी जब विद्रोह कम नहीं हुआतब नील ने खुद मोर्चा संभाला और उसने मोत महल समेत पूरे इलाहाबाद को तहस-नहस कर दिया था।
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