दारुल उलूम में देश के कोने-कोने से करीब साढ़े चार हजार छात्र इस्लामी तालीम हासिल करते हैं। हर मुसलमान दारुल उलूम के साथ भावनात्मक तौर से भी जुड़ा है। दारुल उलूम कोई फतवा जारी करता है तो उसे हर मुस्लिम मानता है।
देवबंद स्थित इस्लामिक इदारा दारुल उलूम यूं तो मजहबी तालीम और विश्व में देवबंदी विचारधारा के लिए जाना जाता है, लेकिन सियासत और सियासी लोगों का भी यहां से पुराना नाता रहा है। ऐसा एक या दो बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ जब राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े दिग्गजों ने दारुल उलूम पहुंचकर अपनी सियासी जमीन तलाशने की कोशिश की। पर, एक घटनाक्रम ने ऐसा माहौल बना दिया कि दारुल उलूम को हर बार चुनाव से पहले बयान जारी करना पड़ता है कि यहां पर राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।